ग्वालियर। अमूमन देखा जाता है कि अधिकारी हो या कर्मचारी अपने आपको पदोन्नत देखना चाहता है फिर चाहे दफ्तर सरकारी हो या निजी, लेकिन ग्वालियर संभाग के जिले में सूबेदार को शहर से इतना प्रेम हुआ कि इसमें उनकी पदोन्नति भी बाधक नहीं बन सकी। साहब की शहर में हर हाल में बने रहने की इच्छा के आगे विभाग का आदेश भी नाकाफी साबित हुआ और आखिरकार अपनी पुरानी कुर्सी मिल ही गई। शहर प्रेम की खासबात यह है कि अन्य शहरों की अपेक्षा यहां पर सूबेदार अपनी मनमर्जी करते हैं। दलाली से लेकर हर अवैध काम की रेट फिक्स करके उसे वैध ठहराते हैं फिर चाहे कुछ भी हो जाए। साहब के रहते शहर की व्यवस्था चारों खाने चित्त पड़ी हुई है, लेकिन साहब के इशारे पर उनके नुमाइंदे शहर के नाकों पर सिर्फ और सिर्फ वसूली करते देखे जा सकते हैं। इन्हें शहर में लगने वाले जामों की कोई फिक्र नहीं होती, होती है तो सिर्फ वसूली की।
पदोन्नति भी नहीं जुदा कर सकी सूबेदार के शहर प्रेम को
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ग्वालियर। अमूमन देखा जाता है कि अधिकारी हो या कर्मचारी अपने आपको पदोन्नत देखना चाहता है फिर चाहे दफ्तर सरकारी हो या निजी, लेकिन ग्वालियर संभाग के जिले में सूबेदार को शहर से इतना प्रेम हुआ कि इसमें उनकी पदोन्नति भी बाधक नहीं बन सकी। साहब की शहर में हर हाल में बने रहने की इच्छा के आगे विभाग का आदेश भी नाकाफी साबित हुआ और आखिरकार अपनी पुरानी कुर्सी मिल ही गई। शहर प्रेम की खासबात यह है कि अन्य शहरों की अपेक्षा यहां पर सूबेदार अपनी मनमर्जी करते हैं। दलाली से लेकर हर अवैध काम की रेट फिक्स करके उसे वैध ठहराते हैं फिर चाहे कुछ भी हो जाए। साहब के रहते शहर की व्यवस्था चारों खाने चित्त पड़ी हुई है, लेकिन साहब के इशारे पर उनके नुमाइंदे शहर के नाकों पर सिर्फ और सिर्फ वसूली करते देखे जा सकते हैं। इन्हें शहर में लगने वाले जामों की कोई फिक्र नहीं होती, होती है तो सिर्फ वसूली की।
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