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न सिंधिया बन पाए मुख्यमंत्री और न ही उनके समर्थक विधायक बन पाएंगे मंत्री

कांग्रेस की सरकार बनने के बाद भी जिले के सिंधिया समर्थक निराश 
शिवपुरी। प्रदेश में कांग्रेस सरकार की ताजपोशी के बाद भी शिवपुरी जिले के सिंधिया समर्थकों में खुशी की लहर नहीं है। बल्कि इसके स्थान पर उनमें उदासीनता और निराशा देखी जा रही है। सिंधिया समर्थक आशा कर रहे थे कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद निश्चित रूप से ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्यमंत्री बनेंगे और शिवपुरी जिले से भी किसी सिंधिया समर्थक विधायक को मंत्री बनने का मौका मिलेगा। लेकिन अब यह स्पष्ट हो गया है कि न तो ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्यमंत्री बन रहे हैं और इस बात की भी संभावना धूमिल है कि जिले के सिंधिया समर्थक कांग्रेस विधायकों में से किसी को मंत्री मंडल में स्थान मिलेगा। प्रदेश कांग्रेस महामंत्री हरवीर सिंह रघुवंशी निराश स्वर में कहते हैं कि भाजपा ने सिंधिया को कांग्रेस का सीएम केंडीडेट मानकर चुनाव लड़ा था। उनके प्रचार में माफ करो महाराज हमारे नेता शिवराज की ध्वनि इस बात को रेखांकित करती थी कि भाजपा सिंधिया से भयभीत है। कार्यकर्ताओं और जनता की भावना भी यहीं थी कि सिंधिया मुख्यमंत्री बने लेकिन उनके मुख्यमंत्री न बनने से उनके संसदीय क्षेत्र में निराशा का वातावरण है। 
शिवपुरी जिले की पांच सीटों में से तीन सीटों पर कांग्रेस विजयी हुई थी।  कांग्रेस ने पिछोर, करैरा और पोहरी विधानसभा सीटें जीती थी। इनमें से पिछोर विधायक केपी सिंह दिग्गी समर्थक हैं जबकि करैरा विधायक जसवंत जाटव और पोहरी विधायक सुरेश राठखेड़ा सिंधिया समर्थक हैं। पिछोर विधायक सिंह छठी बार चुनकर आए हैं और पूर्व में दिग्विजय सिंह की सरकार में वह मंत्री भी रहे हैं। जबकि जसवंत जाटव और सुरेश राठखेड़ा दोनों पहली बार विधायक बने हैं। कांग्रेस सूत्रों से जो संकेत मिल रहे हैं उससे पता चलता है कि 6 बार के विधायक केपी सिंह का मंत्री बनना तय है। जबकि नए विधायकों को अभी मंत्री नहीं बनाया जाएगा। इससे जहां दिग्गी खैमे में उत्साह है, वहीं सिंधिया खैमे में निराशा। शिवपुरी जिले की राजनीति में जबकि सिंधिया समर्थकों का वर्चस्व हैं और संगठन के पदों पर भी सिंधिया समर्थक काबिज हैं। इस कारण श्री सिंह के मंत्री बनने की प्रबल संभावना के चलते भी शिवपुरी जिले की कांग्रेस राजनीति में गर्माहट नहीं देखी जा रही। 

सिंधिया ने दिया बडप्पन का परिचय 
प्रदेश में सत्ता में आने के बाद कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया खैमे की राजनीति मेें उफान आ गया था। दोनों के समर्थक अपने-अपने नेता को मुख्यमंत्री बनाने के लिए सडकोंं पर उतर आए थे। शिवपुरी में शहर कांग्रेस अध्यक्ष शैलेंद्र टेडिया के नेतृत्व में सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाने के लिए धरना भी दिया गया था। जनभावनाओं के आधार पर मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सिंधिया अव्वल बताए जा रहे थे। मुख्यमंत्री पद के दूसरे दावेदार कमलनाथ ने सत्ता में आने के बाद भावी मुख्यमंत्री के रूप में व्यवहार और बयान देना भी शुरू कर दिया था। लेकिन सिंधिया ने गरिमा बनाए रखी थी। मुख्यमंत्री बनने के लिए जिस तरह की जोर आजमाईश राजस्थान में सचिन पायलेट और अशोक गहलौत के बीच हुई और दोनों ने मुख्यमंत्री बनना प्रतिष्ठा का सवाल बनाया। सचिन पायलेट उप मुख्यमंत्री बनाए जाने की शर्त पर ही अशोक गहलौत को मुख्यमंत्री बनाने पर सहमत हुए। परंतु सिंधिया ने बिल्कुल भी दबाव की राजनीति नहीं की। सिंधिया ने हाईकमान के फैसले को अंगीकार कर अपने समर्थकों को संदेश दिया कि वह फैसले का सम्मान करे। इस तरह से उन्होंने बडप्पन का परिचय देकर कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाया जाना स्वीकार किया। 

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