शिवपुरी [केदार सिंह गोलिया]- कहने को तो यहां सबकुछ कायदे और कानून के मुताबिक होता है मगर ये कायदे भी आम इंसान के लिए हैं और कानून भी। ड्राइविंग लाइसेंस बनाना, रजिस्ट्रेशन कराना हो या परमिट, टैक्स प्रक्रिया। इधर से उधर बस धक्के खाते रहो। मदद करना तो बहुत दूर, कोई अधिकारी या कर्मचारी सीधे मुंह बात तक नहीं करेगा। चाहे धक्के खाते हुए आपको एक दिन हो जाए या हफ्ताभर।
हां, अगर आपने जेब से चंद नोट की पत्तियां निकाल ली तो फिर कोई टेंशन नहीं। महज चंद मिनट में काम पूरा। टेंशन दूर करने के लिए मौजूद हैं दलाल। दलाल ही चपरासी का काम संभाल रहे और यही बाबू का भी काम। लाइसेंस व टैक्स की प्रक्रिया ऑनलाइन होने के बाद भी दफ्तर में दलाल राज हावी है।
तत्कालीन सरकार के मुखिया भले ही लाख दावे करें कि, सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं होगा, पर आरटीओ कार्यालय की तरफ शायद उनका ध्यान ही नहीं जाता। मुख्यमंत्री तो दूर खुद परिवहन मंत्री तक अपने विभाग में झांकने को राजी नहीं। अगर ऐसा होता तो शायद यहां चल रहे खेल की कुछ परतें तो उधड़ती। अब लोगों की उम्मीदें आने वाली नई सरकार से हैं कि इस विभाग को दलालों से मुक्त कराए।
दफ्तर से पहले दलालों का काम शुरू
सुबह दफ्तर बाद में खुलता है, दलालों का काम दफ्तर के बाहर पहले शुरू हो जाता है। हाथ में कागजों की फाइल लिए दलाल दफ्तर खुलते ही फाइलें टेबल पर पहुंचानी शुरू कर देते हैं। इनकी हनक सिर्फ इसी बात से लगाई जा सकती है, अफसर कोई भी हो, ये बेधड़क उनके कक्ष में घुसकर फाइल टेबल पर रख देते हैं।
दलालों को मे-आइ-कम-इन तक पूछने की जरूरत नहीं
आम इंसान घंटों बाहर बैठकर अधिकारी से मिलने का इंतजार करता रहता है, लेकिन दलालों को मे-आइ-कम-इन तक पूछने की जरूरत नहीं। अपने धंधे के साथ सरकारी कामों में भी दलालों का बोलबाला है।
जहां दलालों का बोलबाला तो समझ लीजिए बगैर चढ़ावा चढ़ाए...
अफसरों के कमरों से सरकारी फाइलें दूसरे कक्षों में ले जाना हो या लिपिकीय कार्य में कर्मियों की मदद। दलाल हर जगह मौजूद दिखेंगे। जहां दलालों का ही बोलबाला हो तो आप खुद समझ लीजिए कि बगैर चढ़ावा चढ़ाए आपका काम कैसे होगा।