श्रद्धांजलि सभा में साहित्यकारों ने याद किया नामवर सिंह को
शिवपुरी। जिले की प्रमुख साहित्यिक संस्थाओं मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ, मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन, मध्य प्रदेश लेखक संघ और बज्मे उर्दू ने विगत दिवस हिन्दी के शीर्ष आलोचक डॉ. नामवर सिंह को श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया। स्थानीय गांधी सेवा आश्रम में आयोजित इस श्रद्धांजलि सभा में डॉ. नामवर सिंह को याद करते हुए प्रगतिशील लेखक संघ के जिला सचिव जाहिद खान ने कहा, नामवर सिंह तकरीबन छह दशक तक हिन्दी साहित्य में आलोचना के पर्याय रहे। डॉ. रामविलास शर्मा के बाद हिन्दी में वे प्रगतिशील आलोचना के आधार स्तंभ थे। साहित्य में उन्होंने कई नए प्रतिमान स्थापित किए। हिन्दी में 'नई कहानीÓ आंदोलन को आगे बढ़ाने का भी उन्हें ही श्रेय जाता है। वे लंबे समय तक प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष रहे। उनके जाने से हिन्दी आलोचना का युग खत्म हो गया है। वरिष्ठ रंगकर्मी दिनेश वशिष्ट ने कहा, नामवर सिंह बड़े विद्वान लेखक थे। उन्होंने 100 से ज्यादा किताबें लिखीं। नौजवान साहित्यकार हमेशा इस बात के लिए लालायित रहते थे कि नामवर सिंह उनकी रचना पर कुछ बोल दें या लिख दें।
मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सचिव, लेखक अखलाक खान ने नामवर सिंह के व्याख्यान की तारीफ करते हुए कहा, उनके बोलने में एक जादू होता था। जो सुनता वह मंत्रमुग्ध हो जाता था। अपनी बातचीत में भी वे लोगों को लाजवाब कर देते थे। कवि राम पंडित ने कहा, कोई सा भी विषय हो नामवर सिंह अपनी बात बड़ी ही सरलता से श्रोताओं के सामने रखते थे। अपने ही नाम के मुताबिक वे नामवर थे। इप्टा और मध्य प्रदेश ज्ञान विज्ञान समिति के अध्यक्ष डॉ. रामकृष्ण श्रीवास्तव ने कहा, मुझे भी नामवर सिंह को तीन बार सुनने का अवसर मिला। वे बड़े ही तार्किक ढंग से अपनी बात रखते थे। कवि, मध्य प्रदेश लेखक संघ के जिला अध्यक्ष अरुण अपेक्षित ने नामवर सिंह को अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए कहा, हिन्दी साहित्य में डॉ. रामचंद्र शुक्ल के बाद नामवर सिंह सर्वाधिक सशक्त आलोचक थे। छायावाद से लेकर वे अपने जीवन के अंत तक सक्रिय रहे। साहित्य की सेवा की। प्रगतिशील लेखक संघ को पूरे देश में आगे बढ़ाने में नामवर सिंह का बड़ा योगदान है। प्रगतिशील लेखक संघ के जिला अध्यक्ष डॉ. पुनीत कुमार ने नामवर सिंह के साथ हिन्दी की एक और बड़ी साहित्यकार कृष्णा सोबती को अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए कहा, दोनों ही कद्दावर शख्सियत थीं। उनके जाने से हिन्दी साहित्य को सचमुच बहुत बड़ी क्षति हुई है। साहित्य अकादमी और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कृष्णा सोबती ने अपने सभी उपन्यासों 'मित्रो मरजानीÓ, 'समय सरगम, ऐ लड़की, 'दिलो दानिश, 'जिन्दगीनामा आदि में स्त्री की समस्याओं को प्रमुखता से उठाया था। वे स्त्री की स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता की पक्षधर थीं। अपने लेखन से उन्होंने स्त्री विमर्श को नए मुहावरे दिए। बज्मे उर्दू के अध्यक्ष शायर आफताब अलम ने डॉ. नामवर सिंह को बज्मे उर्दू की ओर से खिराज-ए-अकीदत पेश करते हुए कहा, आलोचना करना, कोई छोटा काम नहीं है। इसके लिए लेखक को साहित्य के अलावा अपने समाज, इतिहास और राजनीति की अच्छी समझ होनी चाहिए। तभी वह बड़ा आलोचक बन सकता है। नामवर सिंह हिन्दी साहित्य में इतने समय तक इसलिए शीर्ष पर रहे, क्योंकि वे इसके काबिल थे।







