शिवपुरी। पर्यटन नगरी शिवपुरी की यातायात व्यवस्था चारों खाने चित है। शहर की यातायात व्यवस्था को लेकर माहौल पूरी तरह से अराजक हो गया है। वजह साफ है कि जिस विभाग पर शहर के यातायात को सुव्यवस्थित करने की जिम्मेदारी है, वह इन दिनों से पूरी तरह से चालानी कार्रवाई करने में व्यस्त है। शहर के यातायात प्वाइंटस पर पूरी तरह से सन्नाटा है लेकिन वसूली और चालानी वाले स्थानों पर पूरी तरह से यातायात अमले का फौजफटाका देखने को मिल रहा है। शहर के बिगड़े हुए हालातों पर गौर करें तो यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि है यहां पर यातायात के नाम पर सिर्फ वूसली अभियान चल रहा है और व्यवस्था की ओर जिम्मेदारों का कोई ध्यान ही नहीं है। शहर के मुख्य बाजारों में दुकानों के सामने होने वाला अतिक्रमण, प्रतिष्ठानों के सामने बेतरतीव तरीके से खड़े होने वाले और बीच बजारों में जहां-जहां खड़े होने वाले रेवड़ी और ठेलों को देखकर शहर की तस्वीर साफ नजर आती है कि हमारे शहर की यातायात व्यवस्था कितनी व्यवस्थित है और इस व्यवस्था को बनाए रखने का प्रभार जिन कंधों पर वे अपने कर्तव्यों के प्रति कितने जिम्मेदार हैं।
कहने को शिवपुरी को पर्यटन नगरी का दर्जा मिला है और पूर्व मंत्री और शिवपुरी विधायक यशोधरा राजे सिंधिया के प्रयासों से यह शहर मिनी मेट्रोसिटी में भी शामिल हो गया है। जिस लिहाज से शहर का नाम प्रदेश ही नहीं पूरे देश में प्रसिद्ध है उसके अनुरूप में हमारे यहां की यातायात व्यवस्था बिलकुल भी नहीं है। कहने को शिवपुरी जिला मुख्यालय है लेकिन यातायात व्यवस्था के मामले में यह किसी कस्बे से कम नजर नही आता है। शहर का ऐसा कोई भी बाजार नहीं है कि जहां दुकानों और प्रतिष्ठानों के सामने खड़े बेतरतीव तरीके से खड़े होने दोपहिया वाहन और ऑटो यातायात व्यवस्था को मुंह चिढ़ाते नजर आते हैं। इस शहर की यातायात व्यवस्था का सबसे बड़ा माहौल तो गांव से आने वाले ट्रैक्टर-ट्रॉलियों ने बिगाड़ रखा है जो यातायात नियमों को धता बताते हुए कही भी किसी भी दुकान के सामने खड़े नजर आते हैं। सभी बाजारों में दुकानों और प्रतिष्ठानों के सामने दो पहिया और चार पहिया वाहनों का बेतरतीव तरीके से खड़े होने से न केवल पूरे दिन जाम की स्थिति बनी रहती है बल्कि शहरी दुर्घटनाओं के ग्राफ में भी बढोत्तरी हो रही है।
ऐसा नहीं है कि शहर के यातायात व्यवस्था को सुव्यवस्थित बनाने के लिए किसी तरह के साधने और संसाधनों की कमी है। व्यवस्था को बनाए रखने के लिए अपेक्षित अमला भी मौजूद है। कमी है तो सिर्फ दृढ़ इच्छाशक्ति की। अब तक जितने अधिकारियों को शहर की यातायात व्यवस्था की कमान सौंपी है, उन्होंने शहर के सुव्यवस्थित यातायात को बनाने के काम को प्राथमिकता कम और अपने टारगेट पर पूरा ध्यान दिया है। यातायात प्रभारी अपने वरिष्ठ अफसरों में गुडविल बनाने के लिए व्यवस्था पर कम पर चालानी वसूली पर ध्यान ज्यादा देते हैं। यही कारण है कि यहां कि यातायात व्यवस्था हमेशा से ही ध्वस्त रही है। वर्तमान भी हालात यह है कि शहर में पिछले 10 दिनों से जबर्दस्त ढंग से चालानी वसूली अभियान छेड़ा जा रहा है, इसके पीछे तर्क ये दिया जा रहा है कि हाईकोर्ट और सुप्रीपकोर्ट को अलग-अलग रिपोर्टस भेजी जा रही है। इसके पीछे यातायात प्रभारी का तर्क है कि माननीय दोनों न्यायालयों का फोकस बिना हेलमेट और बिना बीमा वाली गाड़ी गाड़ियों का कार्रवाई करने का है। न्यायालय के निर्देशों के परिपालन में बिना हेलमेट और बिना बीमा वाली गाड़ियां वाली गाड़ियो को ही टारगेट किया जा रहा है और इन नियमों का उल्लघंन करने वाले वाहन चालको के खिलाफ ही चालानी ही कार्रवाई को अंजाम दिया जा रहा है।