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उम्मीदवार बना रहे हैं भितरघातियों की सूची, कांग्रेस की अपेक्षा भाजपा में अधिक हुआ भितरघात

चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस और भाजपा के भितरघातियों की आएगी शामत
शिवपुरी। इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों में जबरदस्त भितरघात हुआ। आश्चर्य की बात तो यह रही कि अनुशासित और केडर वेश पार्टी कही जाने वाली भाजपा में भितरघात की समस्या कांग्रेस की तुलना में अधिक गंभीर रही। पांचों विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा उम्मीदवार भितरघात की समस्या से परेशान रहे। लेकिन 11 दिसंबर को चुनाव परिणाम से पहले दोनों दलों में तूफान से पहले की शांति नजर आ रही है। हालांकि दोनों दलों के उम्मीदवार भितरघातियों की सूची बना रहे हैं और इसके प्रमाण भी वह पार्टी आलाकमान को प्रस्तुत करेंगे। इससे स्पष्ट है कि चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस और भाजपा में भितरघातियों की शामत आना तय है और कई वरिष्ठ और नामचीन्ह चेहरे भी पार्टी से बाहर होंगे। 
सबसे पहले भाजपा की बात करते हैं तो शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र में भाजपा ने तीन बार की विधायक यशोधरा राजे सिंधिया को टिकट दिया। उनका बजन इतना अधिक था कि उनके अलावा किसी अन्य ने टिकट की मांग भी नहीं की। लेकिन इसके बाद भी इस सीट पर भाजपा के वरिष्ठ नेता भितरघात में व्यस्त रहे और वह गुपचुप रूप से कांग्रेस प्रत्याशी सिद्धार्थ लढा के सम्पर्क में रहे। भाजपा कैम्प की एक-एक गतिविधियों की खबर कांग्रेस उम्मीदवार को मिलती रही। सूत्र बताते हैं कि यशोधरा राजे के खिलाफ इतने वरिष्ठ भाजपाईयों ने भितरघात किया जिनकी कल्पना नहीं की जा सकती और जिनमें कई सत्ता के बड़े पदों पर काबिज थे। हालांकि इनकी गतिविधियों की एक-एक जानकारी भाजपा उम्मीदवार के प्रबंधन  को सूत्रों से मिलती रही। उनके खिलाफ योजनाबद्ध ढंग से गुपचुप रूप से मुहिम पूरे चुनाव के दौरान चलती रही। एक जाति विशेष के अन्नकूट में भाजपा उम्मीदवार को हराने की रणनीति बनाई गई। इस अन्नकूट का मकसद सामाजिक से अधिक राजनैतिक रहा। शिवपुरी के बाद भितरघात की समस्या से सर्वाधिक परेशान कोलारस के भाजपा प्रत्याशी वीरेंद्र रघुवंशी रहे। वीरेंद्र रघुवंशी चार साल पहले ही कांग्रेस से भाजपा में आए और उन्हें टिकट न मिले इसके लिए पूरी कोशिश की गई तथा तानाबाना बुना गया। लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बीटो से वीरेंद्र रघुवंशी टिकट लेने मेंं तो सफल रहे लेकिन अपनी पार्टी के अधिकांश लोगों को चाहते हुए भी वह नहीं जोड़ पाए। शुरूआत से ही कोलारस भाजपा के अधिकांश वरिष्ठ पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं ने उनके प्रचार से दूरी बना ली। पूरे चुनाव के दौरान भाजपा के एक पूर्व विधायक परिदृश्य से पूरी तरह गायब रहे। भाजपा और कांग्रेस के महल समर्थक कार्यकर्ताओं ने उनकी जड़े खोदने में कोई कसर नहीं छोडी और सिर्फ अपनी टीम तथा मतदाताओं के भरोसे आखिरी दम तक वीरेंद्र रघुवंशी किला लड़ाते देखे गए। सूत्र बताते हैं कि श्री रघुंवशी समर्थकों ने पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं की प्रमाण सहित शिकायत आलाकमान को भी भिजवाई है। पोहरी विधानसभा क्षेत्र में भी भाजपा के भितरघात की कोई सीमा नहीं रही। टिकट के इच्छुक एक भाजपा के नेेता ने बसपा का दामन थामकर टिकट हथिया लिया और दूसरे नेता ने निर्दलीय रूप से नामजदगी का पर्चा भर दिया। बाद में उक्त नेता ने अपना पर्चा तो वापिस ले लिया लेकिन वह भाजपा प्रत्याशी की अपेक्षा पूरे समय बसपा प्रत्याशी को जिताने में जुटा रहा। श्री भारती के विरोध मेें एक पूर्व विधायक लगातार सक्रिय बने रहे। इस चुनाव में दो बार से जीत रहे भाजपा प्रत्याशी प्रहलाद भारती यदि हारते हैं तो इसमें पार्टी के भितरघात की एक प्रमुख भूमिका होगी। करैरा में भी भाजपा उम्मीदवार राजकुमार खटीक पूरे चुनाव के दौरान भितरघात की समस्या से जूझते रहे। उनके विरोध में टिकट के दावेदार पूर्व विधायक रमेश खटीक सपाक्स से चुनाव मैदान में कूंद पड़े और करैरा के भाजपाईयों ने उन्हें बाहरी उम्मीदवार बताकर स्वीकार नहीं किया। इसी भितरघात के कारण भाजपा प्रत्याशी राजकुमार खटीक कांग्रेस और बसपा उम्मीदवार की तुलना में पीछे नजर आ रहे हैं। पिछोर विधानसभा क्षेत्र में वातावरण भाजपा प्रत्याशी प्रीतम लोधी के पक्ष में था। पिछले चुनाव में उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी केपी सिंह को हार के बावजूद तगड़ी चुनौती पेश की थी। पिछोर में लोधी मतदाताओं की संख्या भी 50 हजार से अधिक थी। लेकिन इसके बावजूद प्रीतम लोधी की संभावनाए भितरघात ने काफी हद तक समाप्त की। पार्टी के एक पूर्व विधायक और वरिष्ठ भाजपा नेत्री ने उनके प्रचार से दूरी बनाई। श्री लोधी का बाहरी उम्मीदवार कहकर विरोध किया। वहीं भितरघात से कांग्रेस उम्मीदवार भी जूझते हुए दिखाई दिए। शिवपुरी में कांग्रेस प्रत्याशी सिद्धार्थ लढा़ के प्रचार से सिंधिया समर्थकों ने बीच चुनाव में हाथ खींच लिया। जिसके कारण श्री लढ़ा को प्रचार की कमान दिग्गी खैमे के हाथों में सौंपनी पड़ी। श्री लढ़ा के समर्थक भितरघात से चिंतित नजर आए। लेकिन उनको यह होंसला रहा कि उनसे अधिक भितरघात भाजपा उम्मीदवार यशोधरा राजे के कैम्प में हो रहा है। बागी भाजपाईयों के समर्थन से उन्होंने अपने दल में मौजूद भितरघात को अधिक गंभीरता से नहीं लिया। पोहरी विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस उम्मीदवार सुरेश राठखेड़ा का विरोध पार्टी के टिकट इच्छुक धाकड़ और ब्राह्मण उम्मीदवारों ने एक साथ किया। उनके विरोधी उनके स्थान पर बसपा प्रत्याशी कैलाश कुशवाह का प्रचार करते देखे गए। करैरा विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस ने निवर्तमान विधायिका शकुंतला खटीक का टिकट काटकर जसवंत जाटव को टिकट दिया था। हालांकि शकुंतला खटीक ने जसवंत जाटव का मुखर विरोध तो नहीं किया। लेकिन कांग्रेस के  प्रचार से वह पूरी तरह कटी रही। उसी तरह टिकट के इच्छुक अन्य दावेदारों ने भी अपने आप को प्रचार से दूर रखा। कोलारस में कांग्रेस प्रत्याशी महेंद्र यादव के खिलाफ भितरघात उतना जबरदस्त नहीं हुआ। हालांकि उनके प्रति सिंधिया खैमे में जबरदस्त नाराजी थी। लेकिन कांग्रेस की सरकार बनने की संभावना के मद्देनजर सिंधिया खैमे के कांग्रेसी भितरघात में नहीं जुटे। पिछोर विधानसभा क्षेत्र में पांच बार से जीत रहे कांग्रेस प्रत्याशी केपी सिंह भी भितरघात से नहीं बच सके। कांग्रेस की गुटबाजी में केपी सिंह दिग्गी समर्थक हैं और बताया जाता है कि कतिपय सिंधिया समर्थकों ने उनके स्थान पर भाजपा प्रत्याशी प्रीतम लोधी का प्रचार किया। चुनाव परिणाम आने के बाद यह पूरी तरह स्पष्ट होगा कि भितरघात से शिवपुरी जिले की कितनी विधानसभा क्षेत्रों के परिणाम प्रभावित होंगे। लेकिन यह तो तय है कि कांग्रेस और भाजपा के कई वरिष्ठ नेता और पदाधिकारी भितरघात के आरोपों के कारण अपने-अपने दलों से अवश्य बाहर होंगे। 

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